किस तरह चयन होता है एक पेरा कमांडो का ???
कौन होता है एक पेरा कमांडो :-
पेरा कमांडो भारत का एक महत्वपूर्ण अंग है जो हमेशा किसी भी परिस्थिति में लड़ाई लड़ने के लिए तैयार रहते है | पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में घुस कर आतंकवादी शिविरो को तबाह करने वाले भारत के पेरा कमांडो फ़िलहाल सबसे ज्यादा सुर्खियों में है | लेकिन ,यह शायद बहुत ही काम लोग जानते है की उन्हें बहुत ही कठिन प्रशिक्षण के दौर से जुगरना पड़ता है | अपने ध्येय वाक्य "बलिदान " को अपने कंधे पर सजाकर चलने वाले ये कमांडो बिषम से बिषम परिस्थितियों में भी अपने मिशन को अंजाम देते है | अर्थात असंभव को संभव बनाना इनकी आदत में शुमार है |
चयन की प्रक्रिया :-
पैरा स्पेशल फ़ोर्स (एस एफ ) बनने के लिए चयन सेना की बिभिन्न रेजीमेंट्स में से होता है | इसमें अधिकारी ,जवान ,जेसीओ सहित विभिन्न रेंको से सैनिक चुने जाते है | इनका अनुपात 10 हजार में से एक का होता है अर्थात पैरा एसएफ बनने के लिए 10 हजार में से एक सैनिक का चयन होता है | पैरा स्पेशल फोर्स बनने के लिए आवेदन ऐच्छिक होते है या कमान अधिकारी इसकी अनुशंसा करता है |
पैरा कमांडो की कठिनतम ट्रेनिंग :-
इनकी पहचान इनके सिर पर लगी महरून बैरेट (गोल टोपी ) और ध्यय वाक्य "बलिदान "से होती है | इसे हासिल करने के लिए बेहद मुश्किल प्रशिक्षण को पूरा करना होता है | इस कोर्स को पूरा करने वालो की औसत आयु 22 वर्ष है |
90 दिनों के इस प्रशिक्षण को दुनिया के सबसे मुश्किल प्रशिक्षणो में से माना जाता है और इसमें भाग लेने वाले कुछ ही सैनिक इसे सफलतापूर्वक पूरा कर पाते है | इस प्रशिक्षण में मानसिक ,शारीरिक क्षमता और इक्छशक्ति का जबरदस्त इम्तिहान लिया जाता है | इस प्रशिक्षण के दौरान दिनभर में पीठ पर 30 किलो सामान जिसमे हथियार व अन्य जरुरी साजो-सामान लाद कर 30-40 किमी की दौड़ ,तरह-तरह के हथियारों को चलाना और बमों-बारूदी सुरंगो का प्रयोग आदि सिखाया जाता है |
इस प्रशिक्षण में सबसे मश्किल होता है 36 घंटे जिसमे बिना सोए ,खाये-पिए एक मिशन को अंजाम देना होता है | इस मिशन में सैनिक की हर तरह से परीक्षा ली जाती है | असली गोलियों और बमों के धमाकों के बीच उन्हें दिए गए मिशन को अंजाम देना होता है | यदि कोई सैनिक सोता या खाता-पीता पकड़ा जाता है तो उसे या तो तत्काल निकल दिया जाता है या पूरा कोर्स फिर से करवाया जाता है | इन 36 घंटो के दौरान उन्हें दुश्मन पर हमला करना , दुश्मन के हमले का सामना करना और किसी बंधक को छुड़वाने जैसे खतरनाक कामो को अंजाम देना पड़ता है |
इन सबके साथ ही उन्हें इन कामो के दौरान हुई मामूली घटनाओ का भी बारीकी से ध्यान रखना पड़ता है | जैसे फलां बंधक ने किस रंग के कपड़े पहने थे या जिस रस्ते से वे आए है ,वहाँ कितने दरवाजे-खिड़की थे | इसका सबसे खतरनाक इम्तहान होता है जब सैनिकों को डुबोया जाता है | दरअसल ,यह उनके दिमाग से मौत का डर निकालने के लिए किया जाता है | जब सैनिक थककर चूर हो जाते है तो उन्हें एक कुंड में ले जाकर सांस टूटने तक बार-बार पानी में डुबोकर यह देखा जाता है कौन कितना सहन कर सकता है | जो भी इस परीक्षा मई खरा नहीं उतर पाता ,उसे प्रशिक्षण से निकाल दिया जाता है | कई बार तो उन्हें हाथ पैर बांधकर पानी में फेंक दिया जाता है| अधिकतर सैनिक इन 36 घंटो के दौरान इस प्रशिक्षण से बाहर हो जाते है |
इसके बाद आता है एक ऐसा इम्तेहान जो किसी पेशेवर मैराथन धावक लिए भी बेहद मुश्किल है | इन्हे 100 किमी की "इंड्यूरेन्स रन "में भाग लेकर उसे पूरा करना होता है | 30 किमी के 2 और 10 किमी के चरणों में 16-17 घंटे में पूरी करनी होती है | इससे उनकी दृढ़ता और सहनशक्ति की परीक्षा ली जाती है | इस दौड़ को पूरा करने के बाद भी सैनिको को कई तरह के प्रशिक्षणो से गुजरना पड़ता है |
90 दिन के बाद प्रशिक्षण में भाग लेने वाले सदस्यों में से कुछ बिरले ही पैरा स्पेशल फ़ोर्स की मेहरून बैरेट पहनने का हक़दार होता है ,इनका पूरा जीवन अपनी रेजिमेंट के ध्यय वाक्य " बलिदान " पर आधारित होता है | हालाँकि इस कठोर प्रशिक्षण की कसौटी पर 20 फीसदी सैनिक ही खरे उतर पाता पाते है |
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