Sunday 13 January 2019

भारत की सान गरुड़ कमांडोज़ का ट्रेनिंग किस प्रकार की होती है ???

कौन होता एक गरुड़ कमांडो:-

गरुड़ कमांडो भारतीय वायुसेना की सान होते है ये दुश्मनो के लिए काल के रूप में माने जाते है| ये इस प्रकार ट्रेंड किये जाते ताकि समय पड़ने किसी तरह की ऑपरेशन को अंजाम देने में महारत हासिल होते है | साल 2001 में जम्मू-कश्मीर के एयरफोर्स के दो बड़े बेस पर आतंकी हमला हुआ था | ऐसे हालात में हथियारबंद फोर्सेस के  पहुंचने में वक्त लगता है| अब उस समय एयरफोर्स स्टैब्लिशमेन्ट की सुरक्षा कोन करे ,तो एयरफोर्स को ऐसी फ़ोर्स की जरुरत महसूस हुई ,जो हमले ,बचाव और क्रिटिकल हालात में दुश्मनो को तुरंत जबाब दे सके | ऐसे कमांडो ,जो आर्मी की तरह काम कर सके और आतंकियों से लड़ सकें | अक्टूबर 2002 में इस प्लान पर काम शुरू हो गया और 2004 तक फ़ोर्स बन के तैयार हो गया | पहले इसका नाम "टाइगर फ़ोर्स "रखा गया था ,जिसे बाद में "गरुड़ कमांडो "कर दिया गया | हिन्दू मान्यताओं में गरुड़ भगवान विष्णु के वाहन बताए गए है |

कोन-कोन से ऑपरेशन कर सकते है गरुड़ कमांडोस ???

सितम्बर 2003 में जब भारत सरकार ने इस फ़ोर्स की मंजूरी दी ,तो सबसे पहले 100 वालिंटियर्स को ट्रेनिंग दी गई ,जिनमे से 62 आखिर में चुने गए | जैसे आर्मी के पास पेरा कमांडोज होते है ,नेवी के पास मार्कोस कमांडोज होते है ,उसी तरह अब एयरफोर्स के पास गरुड़ कमांडोज़ होने लगे | ये डायरेक्ट एक्शन ले सकते है ,हवाई हमला कर सकते है ,स्पेशल ऑपरेशन चला सकते है ,जमीनी लड़ाई लड़ सकते है विद्रोह संभल सकते है ,सर्च और रेस्क्यू ऑपरेशन भी कर सकता है | ये वॉर-टाइम और पीस-टाइम दोनों वक्त में काम आते है | 

कैसे होता है एक गरुड़ कमांडो का चयन ???

गरुड़ कमांडोज़ की तादाद सीक्रेट है ,लेकिन अनुमान लगाया जाता है की पठानकोट हमले से पहले इनकी संख्या 1080 थी ,जो हमले के बाद बढ़ाकर 1780 कर दी गई है | लेकिन इनका सेलेक्शन ऐसे नहीं होता है की एयरफोर्स या दूसरी जगहों से वालिंटियर बुला लिए गए | पहले बेच में एयरफोर्स के वो वालिंटियर थे ,जिन्हे आन्ध्रप्रदेश वाली एकेडमी में ट्रेंड किया गया था | उसके बाद से बाकायदा विज्ञापन आता  है और सीधी भर्ती होती है | चुने गए कमांडो पुरे करियर भर गरुड़ में  ही रहते है| वैसे इन्हे एयरफोर्स का भी ट्रेनिंग भी बहुत अच्छे से दी अति है | 

किस प्रकार की ट्रेनिंग लेते है एक गरुड़ कमांडो ???


गरुड़ कमांडो का ट्रेनिंग एक से लेकर तीन साल तक चलती है ,जो इंडियन स्पेशल फोर्सेस में सबसे ज्यादा वक्त की ट्रेनिंग है | मुश्किल भी उतनी ,जितनी मार्कोस और पैरा कमांडोज़ की होती है | अलग-अलग फेज में कई ट्रेनिंग एकेडमी में इनकी ट्रेनिंग होती है | जैसे पैराशूट ट्रेनिंग स्कुल ,नेवी का डाइविंग स्कुल और आर्मी का जंगल वारफेयर स्कुल ,नेशनल सिक्युरिटी गार्ड्स (NSG ) के साथ भी ट्रेनिंग होती है | 
ट्रेनिंग में शरीर को फौलाद बना दिया जाता है | दौड़ना ,चढ़ना ,कूदना ,रेंगना ,एक्सरसाइज और न जाने क्या-क्या सिखाते है | इन्हे ऐसे तैयार किया जाता है की हाइजेक सिचुएशन हो ,जंगल में लड़ना हो या पानी-हवा में | ये कमांडोज़ किसी भी हालात  लड़ाई कर सकते है | इन्हे पिस्टल ,असॉल्ट रायफल ,कार्बाइन और क्लाश्रिकोव रायफल जैसे ढेर सारे हथियार चलने की ट्रेनिंग दी जाती है | 

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1 Comments:

At 26 October 2020 at 04:32 , Blogger Unknown said...

mayurdighe324@gmail.com

 

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