Monday 14 January 2019

कैसे होती है एक NSG (नेशनल सिक्युरिटी गार्ड ) का चयन ???

कौन होता है एक NSG कमांडो ???



 NSG(नेशनल सिक्युरिटी गार्ड ) भारत का सबसे अहम कमांडो फ़ोर्स में से एक है जो गृह मंत्रालय के अंतर्गत काम करते है | आतंकवादियों और आतंरिक सुरक्षा के मोर्चो पर लड़ने के लिए इन्हे विशेष  तौर पर इस्तेमाल किया जाता है | इसके साथ ही VIP सुरक्षा ,बम निरोधक और एंटी हाइजैकिंग के लिए इन्हे खासतौर पर इस्तेमाल किया जाता है | इनमे आर्मी के लड़ाके शामिल किये जाते है ,हालाँकि दूसरे फोर्सेस से भी जवानो को शामिल किये जाते है | इनकी फुर्ती और तेजी की वजह से इन्हे ब्लेक कैट भी कहा जाता है | 26/11 मुंबई हमलों के दौरान NSG की भूमिका को पुरे देश ने सराहा था |

कब हुआ NSG का गठन ???


NSG का गठन 16 अक्टूबर 1984 में किया गया ताकि देश में होने वाली आतंकी गतिविधियों से निपटा जा सके | NSG का मूल मन्त्र है सर्वत्र सर्वोत्तम सुरक्षा | ब्लेक केट कमांडो बनना कोई आसान काम नहीं है | काली बर्दी और बिल्ली जैसी चलाकी के कारण इन्हे ब्लैक कैट कहा  जाता है | ब्लेक केट कमांडो बनने का मौका हर किसी को नहीं मिलता है | इसके लिए आर्मी ,पैरा मिलिट्री या पुलिस में होना जरुरी होता है | आर्मी से 3 साल और पैरा  मिलिट्री से 5 साल के लिए जवान कमांडो ट्रेनिंग के लिए आते है | 


कैसे होती है NSG की ट्रेनिंग :-


कमांडोज़ की ट्रेनिंग बहुत ही कठिन होती है | NSG के लिए 35 वर्ष से काम उम्र के जवानो को ही शामिल किया जाता है | सबसे पहले फिजिकल और मेंटल टेस्ट होता है | NSG कमांडोज़ को ढाई साल की कड़ी ट्रेनिंग के बाद तैयार  किया जाता है | लेकिन ये ट्रेनिंग इतनी मुश्किल होती है की आधे तो कुछ ही महीनो में छोड़कर चले जाते है | ट्रेनिंग के दौरान इन्हे उफनती नदियों और आग से गुजरना ,बिना सहारे पहाड़ पर चढ़ना पड़ता है | भारी बोझ के साथ कई किमी की दौड़ और घने जंगलो में रात गुजारना भी इनकी ट्रेनिंग का हिस्सा होता है | उसके बाद  12 सप्ताह तक चलने वाली ये देश की सबसे कठिन ट्रेनिंग में से एक होती है | शुरुआत में जवानो में 30-40 प्रतिशत फिटनेस योग्यता होती है ,जो ट्रेनिंग ख़त्म होने तक बढ़कर 80-90 प्रतिशत तक हो जाती है | 


अत्याधुनिक हथियारों से लेस रहते है NSG कमांडोज़ :-


अत्याधुनिक हथियारों से लेस NSG कमांडोज़ को दुश्मन से लोहा लेने ,हवाई आक्रमण करने और रेस्क्यू ऑपरेशन के लिए खास तौर पर तैयार किया जाता है | आमतौर पर चार गरुड़ कमांडोज़ मिलकर एक छोटा दस्ता बनाते है ,जिसे ट्रेक कहते है | चार-चार कमांडो के ऐसे तीन ट्रेक बनाए जाते है | पहला ट्रेक दुश्मन पर हमला बोलता है ,जबकि कमान नंबर 2 के पास होती है | इतने में नंबर 3 टेलिस्कॉपिक गन से निशाना लगता है ,जबकि आखिरी गरुड़ भारी हथियारों से तबाही मचता है | 
ये आगे बढ़ने की तकनीक होती है ,इसे कैप्टर पिलर पैतंरा कहते है | पोर्टेबल लेज़र डेजिग्नेशन सिस्टम एक दूरबीन का काम करती है,जो फाइटर प्लेन से जुड़ा होता है | इसके द्धारा कमांडो अपने दुश्मन को जमीन पर 20 किमी तक देख सकता है|  इसके बाद कमांडोज़ टारगेट सेट करते है , और फाइटर प्लेन दुश्मनो का खात्मा करता है| आर्मी फोर्सेस से अलग NSG कमांडोज़ काली टोपी पहनते है | इन्हे मुख्य तौर पर माओवादियों के खिलाफ मुहीम में शामिल किया जाता है |  

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