Sunday 20 January 2019

कैसे होता है CRPF के कोबरा कमांडोज़ की सबसे कठिन ट्रेनिंग ???

कौन होते है एक कोबरा कमांडोज़:-


COBRA (कमांडो बटालियन फॉर रेजोल्यूट एक्शन ) ये CRPF का ही एक हिस्सा होते है |खौफ का दूसरा नाम होता है कोबरा कमांडो, चीते सी चाल ,बाज़ सी नज़र ,कोबरा सा बिना आवाज़ के आक्रमण करना ये इनके ट्रेनिंग का एक अहम हिस्सा होता है | कोबरा कमांडो को जंगल की लड़ाई के लिए खास तौर पर तैयार किये जाते है | इनको बिना आवाज़ के जंगल के किसी भी हिस्से मे छिपने और अचानक दुश्मनो पर हमला करने मे महारथ हासिल होता है | दुश्मनो के लिए कोबरा कमांडो किसी काल से कम नहीं होते है | 


कोन-कोन से ऑपरेशन के लिए कोबरा जाने जाते है :-



कोबरा कमांडो को नक्सलियों से निपटने के लिए खास तोर पर तैयार किया जाता है | इन दिनों नक्सलियों का एक तरह से घर सा हो गया है जंगल और इन्ही नक्सलियों को खत्म करने के लिए कोबरा कमांडो का गठन किया गया | ये दुश्मनो के ठिकानो का पता लगाकर उन्ही के ठिकानो सहित उनका काम तमाम कर देते है और दुश्मनो को पता भी नहीं चलता | 


कितना कठिन होता है कोबरा कमांडोज़ की ट्रेनिंग :-

कोबरा कमांडोज़ की ट्रेनिंग बहुत ही कठिन होती है | इन्हे ट्रेनिंग के दौरान 20-50 kg का भार के साथ दौड़ लगानी पड़ती है क्योकि ऑपरेशन के दौरान इन्हे कई किलोमीटर तक हथियारों के भार के साथ के साथ चलना पड़ता है | इनके ट्रेनिंग की ख़ास बात ये होती है की इन्हे बिना खाना-पीना के 10-15 दिन जंगल मे उपस्थित फल-फूल या कीड़े-मकोड़े खाकर दुश्मनो से लोहा ले सकते है | कोबरा कमांडो को ट्रेनिंग के दौरान हर मुश्किलो का सामना करना सिखाया जाता है  जैसे पेड़ ,पहाड़,नदी ,नाला,कीचड़  , दीवार जैसे किसी को भी ये कमांडोज़ आसानी से पार कर सकते है | इनको किसी भी सांप को पकड़ने की ट्रेनिंग दी जाती है इन्हे चलते हुए फायरिंग करना भी ट्रेनिंग के दौरान सिखाया जाता है ये किसी भी लक्ष्य को आँख बंद करके भी भेद  सकते है | इन्हे बहुत सारी हथियारों की ट्रेनिंग दी जाती है ये कमांडोज़ को हर किस्म की बिस्फोटक को भी नस्ट कर सकते है | 


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Tuesday 15 January 2019

कोन होते है घातक कमांडो जिससे पूरी दुनिया थर्राती है ???

कौन होते है घातक प्लाटून या घातक कमांडो ???



घातक प्लाटून या घातक कमांडो के नाम से पूरी दुनिया युं ही नहीं थर्राती है ,वे पैदल सेना के भीतर स्पेशल ऑपरेशन संचालित करने के लिए ही तैयार किए जाते है | उन्हें दिया गया "घातक" शब्द हिन्दी का बेहद प्रचलित शब्द है ,उन्हें बेहद खतरनाक और हत्यारा भी कहा जाता है | संक्षेप में कहे तो उन्हें पैदल सेना भी कहा  जाता है | घातक प्लाटून या घातक कमांडोज़ स्पेशल ऑपरेशन को अंजाम देने वाली इंफ्रेंट्री प्लाटून होती है | इंडियन आर्मी की हर इंफ्रेंट्री के पास घातक की एक प्लाटून जरुरी होती है | घातक कमांडो का रोल टूप्स के साथ दुश्मन के ठिकानो पर बटालियन की मदद के बिना हमला करना है | घातक का ऑपरेशन रोल अमेरिका की स्काउन्ट स्नाइपर प्लाटून ,यूएस मरीन की एसटीए प्लाटून और ब्रिटिश आर्मी की पेट्रोल्स प्लाटून की तरह ही होती है |

घातक प्लाटून की ट्रेनिंग किस प्रकार की होती है:-

घातक प्लाटून की ट्रेनिंग बहुत ही कठिन होती है इन्हे शारीरिक तौर पर सबसे फिट और सबसे उत्साहित सैनिक को ही घातक प्लाटून में जगह मिलती है | इन्हे कर्नाटक के बेलगाम में ट्रेनिंग दी जाती है | कमांडोज़ को  यहां पर हेलीबर्न असॉल्ट ,पहाड़ों पर चढ़ने ,माउंटेन वॉरफेयर ,विध्वंस ,एडवांस्ड वेपन्स ट्रेनिंग ,करीबी मुकाबलों का सामना करने और इन्फेंट्री की रणनीति सिखाई जाती है | 
इस प्लाटून के सदस्यों को ऊंचाई पर स्थित वॉरफेयर स्कुल ,काउंटर-इनसरजेंसी और जंगल वॉरफेयर स्कुल में भेजा जाता है | इस ट्रेनिंग में वे अपने बदन को कुछ इस तरह तपाते है की वे वहां से फौलाद बन कर निकलते है | वे हर तरह की विषम और भयावह परिस्थितियों से लड़ने के लिए तैयार किये जाते है | 


कोन-कोन  से हथियारों की ट्रेनिंग दी जाती है घातक प्लाटून को ???

घातक  कमांडोज़ को IWI Tavor TAR-21 ,INSAS और AK-47 जैसे हथियार चलने की ट्रेनिंग दी जाती है | इस यूनिट में शामिल मक्सरमेन को DRAGUNOV SVD और Heckler &Koch MSG-90 जैसे स्नाईपर  राइफल चलाने की ट्रेनिंग दी जाती है | 

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Monday 14 January 2019

कैसे होती है एक NSG (नेशनल सिक्युरिटी गार्ड ) का चयन ???

कौन होता है एक NSG कमांडो ???



 NSG(नेशनल सिक्युरिटी गार्ड ) भारत का सबसे अहम कमांडो फ़ोर्स में से एक है जो गृह मंत्रालय के अंतर्गत काम करते है | आतंकवादियों और आतंरिक सुरक्षा के मोर्चो पर लड़ने के लिए इन्हे विशेष  तौर पर इस्तेमाल किया जाता है | इसके साथ ही VIP सुरक्षा ,बम निरोधक और एंटी हाइजैकिंग के लिए इन्हे खासतौर पर इस्तेमाल किया जाता है | इनमे आर्मी के लड़ाके शामिल किये जाते है ,हालाँकि दूसरे फोर्सेस से भी जवानो को शामिल किये जाते है | इनकी फुर्ती और तेजी की वजह से इन्हे ब्लेक कैट भी कहा जाता है | 26/11 मुंबई हमलों के दौरान NSG की भूमिका को पुरे देश ने सराहा था |

कब हुआ NSG का गठन ???


NSG का गठन 16 अक्टूबर 1984 में किया गया ताकि देश में होने वाली आतंकी गतिविधियों से निपटा जा सके | NSG का मूल मन्त्र है सर्वत्र सर्वोत्तम सुरक्षा | ब्लेक केट कमांडो बनना कोई आसान काम नहीं है | काली बर्दी और बिल्ली जैसी चलाकी के कारण इन्हे ब्लैक कैट कहा  जाता है | ब्लेक केट कमांडो बनने का मौका हर किसी को नहीं मिलता है | इसके लिए आर्मी ,पैरा मिलिट्री या पुलिस में होना जरुरी होता है | आर्मी से 3 साल और पैरा  मिलिट्री से 5 साल के लिए जवान कमांडो ट्रेनिंग के लिए आते है | 


कैसे होती है NSG की ट्रेनिंग :-


कमांडोज़ की ट्रेनिंग बहुत ही कठिन होती है | NSG के लिए 35 वर्ष से काम उम्र के जवानो को ही शामिल किया जाता है | सबसे पहले फिजिकल और मेंटल टेस्ट होता है | NSG कमांडोज़ को ढाई साल की कड़ी ट्रेनिंग के बाद तैयार  किया जाता है | लेकिन ये ट्रेनिंग इतनी मुश्किल होती है की आधे तो कुछ ही महीनो में छोड़कर चले जाते है | ट्रेनिंग के दौरान इन्हे उफनती नदियों और आग से गुजरना ,बिना सहारे पहाड़ पर चढ़ना पड़ता है | भारी बोझ के साथ कई किमी की दौड़ और घने जंगलो में रात गुजारना भी इनकी ट्रेनिंग का हिस्सा होता है | उसके बाद  12 सप्ताह तक चलने वाली ये देश की सबसे कठिन ट्रेनिंग में से एक होती है | शुरुआत में जवानो में 30-40 प्रतिशत फिटनेस योग्यता होती है ,जो ट्रेनिंग ख़त्म होने तक बढ़कर 80-90 प्रतिशत तक हो जाती है | 


अत्याधुनिक हथियारों से लेस रहते है NSG कमांडोज़ :-


अत्याधुनिक हथियारों से लेस NSG कमांडोज़ को दुश्मन से लोहा लेने ,हवाई आक्रमण करने और रेस्क्यू ऑपरेशन के लिए खास तौर पर तैयार किया जाता है | आमतौर पर चार गरुड़ कमांडोज़ मिलकर एक छोटा दस्ता बनाते है ,जिसे ट्रेक कहते है | चार-चार कमांडो के ऐसे तीन ट्रेक बनाए जाते है | पहला ट्रेक दुश्मन पर हमला बोलता है ,जबकि कमान नंबर 2 के पास होती है | इतने में नंबर 3 टेलिस्कॉपिक गन से निशाना लगता है ,जबकि आखिरी गरुड़ भारी हथियारों से तबाही मचता है | 
ये आगे बढ़ने की तकनीक होती है ,इसे कैप्टर पिलर पैतंरा कहते है | पोर्टेबल लेज़र डेजिग्नेशन सिस्टम एक दूरबीन का काम करती है,जो फाइटर प्लेन से जुड़ा होता है | इसके द्धारा कमांडो अपने दुश्मन को जमीन पर 20 किमी तक देख सकता है|  इसके बाद कमांडोज़ टारगेट सेट करते है , और फाइटर प्लेन दुश्मनो का खात्मा करता है| आर्मी फोर्सेस से अलग NSG कमांडोज़ काली टोपी पहनते है | इन्हे मुख्य तौर पर माओवादियों के खिलाफ मुहीम में शामिल किया जाता है |  

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Sunday 13 January 2019

भारत की सान गरुड़ कमांडोज़ का ट्रेनिंग किस प्रकार की होती है ???

कौन होता एक गरुड़ कमांडो:-

गरुड़ कमांडो भारतीय वायुसेना की सान होते है ये दुश्मनो के लिए काल के रूप में माने जाते है| ये इस प्रकार ट्रेंड किये जाते ताकि समय पड़ने किसी तरह की ऑपरेशन को अंजाम देने में महारत हासिल होते है | साल 2001 में जम्मू-कश्मीर के एयरफोर्स के दो बड़े बेस पर आतंकी हमला हुआ था | ऐसे हालात में हथियारबंद फोर्सेस के  पहुंचने में वक्त लगता है| अब उस समय एयरफोर्स स्टैब्लिशमेन्ट की सुरक्षा कोन करे ,तो एयरफोर्स को ऐसी फ़ोर्स की जरुरत महसूस हुई ,जो हमले ,बचाव और क्रिटिकल हालात में दुश्मनो को तुरंत जबाब दे सके | ऐसे कमांडो ,जो आर्मी की तरह काम कर सके और आतंकियों से लड़ सकें | अक्टूबर 2002 में इस प्लान पर काम शुरू हो गया और 2004 तक फ़ोर्स बन के तैयार हो गया | पहले इसका नाम "टाइगर फ़ोर्स "रखा गया था ,जिसे बाद में "गरुड़ कमांडो "कर दिया गया | हिन्दू मान्यताओं में गरुड़ भगवान विष्णु के वाहन बताए गए है |

कोन-कोन से ऑपरेशन कर सकते है गरुड़ कमांडोस ???

सितम्बर 2003 में जब भारत सरकार ने इस फ़ोर्स की मंजूरी दी ,तो सबसे पहले 100 वालिंटियर्स को ट्रेनिंग दी गई ,जिनमे से 62 आखिर में चुने गए | जैसे आर्मी के पास पेरा कमांडोज होते है ,नेवी के पास मार्कोस कमांडोज होते है ,उसी तरह अब एयरफोर्स के पास गरुड़ कमांडोज़ होने लगे | ये डायरेक्ट एक्शन ले सकते है ,हवाई हमला कर सकते है ,स्पेशल ऑपरेशन चला सकते है ,जमीनी लड़ाई लड़ सकते है विद्रोह संभल सकते है ,सर्च और रेस्क्यू ऑपरेशन भी कर सकता है | ये वॉर-टाइम और पीस-टाइम दोनों वक्त में काम आते है | 

कैसे होता है एक गरुड़ कमांडो का चयन ???

गरुड़ कमांडोज़ की तादाद सीक्रेट है ,लेकिन अनुमान लगाया जाता है की पठानकोट हमले से पहले इनकी संख्या 1080 थी ,जो हमले के बाद बढ़ाकर 1780 कर दी गई है | लेकिन इनका सेलेक्शन ऐसे नहीं होता है की एयरफोर्स या दूसरी जगहों से वालिंटियर बुला लिए गए | पहले बेच में एयरफोर्स के वो वालिंटियर थे ,जिन्हे आन्ध्रप्रदेश वाली एकेडमी में ट्रेंड किया गया था | उसके बाद से बाकायदा विज्ञापन आता  है और सीधी भर्ती होती है | चुने गए कमांडो पुरे करियर भर गरुड़ में  ही रहते है| वैसे इन्हे एयरफोर्स का भी ट्रेनिंग भी बहुत अच्छे से दी अति है | 

किस प्रकार की ट्रेनिंग लेते है एक गरुड़ कमांडो ???


गरुड़ कमांडो का ट्रेनिंग एक से लेकर तीन साल तक चलती है ,जो इंडियन स्पेशल फोर्सेस में सबसे ज्यादा वक्त की ट्रेनिंग है | मुश्किल भी उतनी ,जितनी मार्कोस और पैरा कमांडोज़ की होती है | अलग-अलग फेज में कई ट्रेनिंग एकेडमी में इनकी ट्रेनिंग होती है | जैसे पैराशूट ट्रेनिंग स्कुल ,नेवी का डाइविंग स्कुल और आर्मी का जंगल वारफेयर स्कुल ,नेशनल सिक्युरिटी गार्ड्स (NSG ) के साथ भी ट्रेनिंग होती है | 
ट्रेनिंग में शरीर को फौलाद बना दिया जाता है | दौड़ना ,चढ़ना ,कूदना ,रेंगना ,एक्सरसाइज और न जाने क्या-क्या सिखाते है | इन्हे ऐसे तैयार किया जाता है की हाइजेक सिचुएशन हो ,जंगल में लड़ना हो या पानी-हवा में | ये कमांडोज़ किसी भी हालात  लड़ाई कर सकते है | इन्हे पिस्टल ,असॉल्ट रायफल ,कार्बाइन और क्लाश्रिकोव रायफल जैसे ढेर सारे हथियार चलने की ट्रेनिंग दी जाती है | 

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Saturday 12 January 2019

किस तरह चयन होता है एक पेरा कमांडो का ???

कौन होता है एक पेरा कमांडो  :-


पेरा कमांडो भारत का एक महत्वपूर्ण अंग है जो हमेशा किसी भी परिस्थिति में लड़ाई लड़ने के लिए तैयार रहते है | पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में घुस कर आतंकवादी शिविरो को तबाह करने वाले भारत के पेरा कमांडो फ़िलहाल सबसे ज्यादा सुर्खियों में है | लेकिन ,यह शायद बहुत ही काम लोग जानते है की उन्हें बहुत ही कठिन प्रशिक्षण के दौर से जुगरना पड़ता है | अपने ध्येय वाक्य "बलिदान " को अपने कंधे पर सजाकर चलने वाले ये कमांडो बिषम से बिषम परिस्थितियों में भी अपने मिशन को अंजाम देते है | अर्थात असंभव को संभव बनाना इनकी आदत में शुमार है |


चयन की प्रक्रिया :-

पैरा स्पेशल फ़ोर्स (एस एफ ) बनने के लिए चयन सेना की बिभिन्न रेजीमेंट्स में से होता है | इसमें अधिकारी ,जवान ,जेसीओ सहित विभिन्न रेंको से सैनिक चुने जाते है | इनका अनुपात 10 हजार में से एक का होता है अर्थात पैरा एसएफ  बनने के लिए 10 हजार में से एक सैनिक का चयन होता है | पैरा स्पेशल फोर्स बनने के लिए आवेदन ऐच्छिक होते है या कमान अधिकारी इसकी अनुशंसा करता है |  


पैरा कमांडो की कठिनतम ट्रेनिंग :-

इनकी पहचान इनके सिर पर लगी महरून बैरेट (गोल  टोपी ) और ध्यय वाक्य "बलिदान "से होती है | इसे हासिल करने के लिए बेहद मुश्किल प्रशिक्षण को पूरा करना होता है | इस कोर्स को पूरा करने वालो की औसत आयु 22 वर्ष है | 
90 दिनों के इस प्रशिक्षण को दुनिया के सबसे मुश्किल प्रशिक्षणो में से माना जाता है और इसमें भाग लेने वाले कुछ ही सैनिक इसे सफलतापूर्वक  पूरा कर पाते है | इस प्रशिक्षण में मानसिक ,शारीरिक क्षमता और इक्छशक्ति का जबरदस्त इम्तिहान लिया जाता है | इस प्रशिक्षण के दौरान दिनभर में पीठ पर 30 किलो सामान जिसमे हथियार व अन्य जरुरी साजो-सामान लाद कर 30-40 किमी की दौड़ ,तरह-तरह के हथियारों को चलाना और बमों-बारूदी सुरंगो का प्रयोग आदि सिखाया जाता है | 
इस प्रशिक्षण में सबसे मश्किल होता है 36 घंटे जिसमे बिना सोए ,खाये-पिए एक मिशन को अंजाम देना होता है | इस मिशन में सैनिक की हर तरह से परीक्षा ली जाती है | असली गोलियों और बमों के धमाकों के बीच उन्हें दिए गए मिशन को अंजाम देना होता है | यदि कोई सैनिक सोता या खाता-पीता पकड़ा जाता है तो उसे या तो तत्काल निकल दिया जाता है या पूरा कोर्स फिर से करवाया जाता है | इन 36 घंटो के दौरान उन्हें दुश्मन पर हमला करना , दुश्मन के हमले का सामना करना और किसी बंधक को छुड़वाने जैसे खतरनाक कामो को अंजाम देना पड़ता है | 
इन सबके साथ ही उन्हें इन कामो के दौरान हुई मामूली घटनाओ का भी बारीकी से ध्यान रखना पड़ता है | जैसे फलां बंधक ने किस रंग के कपड़े पहने थे या जिस रस्ते से वे आए है ,वहाँ कितने दरवाजे-खिड़की थे | इसका सबसे खतरनाक इम्तहान होता है जब सैनिकों को डुबोया जाता है | दरअसल ,यह उनके दिमाग से मौत का डर निकालने के लिए किया जाता है | जब सैनिक थककर चूर हो जाते है तो उन्हें एक कुंड में ले जाकर सांस टूटने तक बार-बार पानी में डुबोकर यह देखा जाता है कौन कितना सहन कर सकता है | जो भी इस परीक्षा मई खरा नहीं उतर पाता ,उसे प्रशिक्षण से निकाल दिया जाता है | कई बार तो उन्हें हाथ पैर बांधकर पानी में फेंक दिया जाता है| अधिकतर सैनिक इन  36 घंटो  के दौरान इस प्रशिक्षण से बाहर हो जाते है | 

इसके बाद आता है एक ऐसा इम्तेहान जो किसी पेशेवर मैराथन धावक  लिए भी बेहद मुश्किल है | इन्हे 100 किमी की "इंड्यूरेन्स रन "में भाग लेकर उसे पूरा करना होता है | 30 किमी के 2 और 10 किमी के चरणों में 16-17 घंटे में पूरी करनी होती है | इससे उनकी दृढ़ता और सहनशक्ति की परीक्षा ली जाती है | इस दौड़ को पूरा करने के बाद भी सैनिको को कई तरह के प्रशिक्षणो से गुजरना पड़ता है | 

90 दिन के बाद प्रशिक्षण में भाग लेने वाले सदस्यों में से कुछ बिरले ही पैरा स्पेशल फ़ोर्स की मेहरून बैरेट पहनने का हक़दार होता है ,इनका पूरा जीवन अपनी रेजिमेंट के ध्यय वाक्य " बलिदान " पर आधारित होता है | हालाँकि इस कठोर प्रशिक्षण की कसौटी पर 20 फीसदी सैनिक ही खरे उतर पाता पाते है | 

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Friday 11 January 2019

मार्कोस कमांडो बनने के लिए कौन कौन से ट्रैनिंग से गुजरना पड़ता है ???

मार्कोस कमांडो होता कौन है:-

मार्कोस को पहले समुद्री कमांडो फाॅर्स या एमसीएफ के रूप में जाना जाता था | भारतीय नौसेना की एक बिशेष बल इकाई है जिसे 1987  मैं  स्थापित किया गया था | मार्कोस का प्रशिक्षण इतना ब्यापक होता है की इनको आतंकबाद से लेकर ,नेवी ऑपरेशन और एंटी पायरेसी ऑपरेशन में भी भी इस्तेमाल किया जाता है | कुछ मामलो में तो इनको अमेरिकी नेवी सील से बेहतर माना जाता है | इनको मोटो है "THE FEW THE FEARLESS. "

1000 सेनिको में से कोई एक ही मार्कोस कमांडो बन पाता है :

मार्कोस कमांडो का सिलेक्शन होना बहुत ही मुश्किल होता है | ये कमांडो भारत के सबसे खतरनाक कमांडो में गिने जाते है | इनसे किसी भी तरह के ऑपरेशन करवाये  जा सकते है जबकि मरीन अर्थात पानी से जुड़े ऑपरेशन में इनको महारत हासिल होती है | 


मार्कोस कमांडो का चयन कैसे होता है :-

मार्कोस कमांडो में शामिल होने के लिए भारतीय नौसेना के किसी भी कर्मचारी को पहले तीन दिवसीय ,शारीरिक  फिटनेस टेस्ट और योग्यता परीक्षा से गुजरना होता है | 


किस तरह की ट्रेनिंग लेते है मार्कोस कमांडो :-

एक मार्कोस कमांडो के रूप में प्रशिक्षित होने के लिए सेलेक्शन हासिल करना ही बहुत मुश्किल होता है | मार्कोस कमांडो बनने के लिए 20 साल के युवाओ का चयन किया जाता है | पूर्व -प्रशिक्षण चयन प्रक्रिया में तीन दिवसीय शारीरिक फिटनेस और योग्यता परीक्षा शामिल होती है जिसमे लगभग 80 % आवेदको को  स्क्रीनिंग  करके बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है | इसके बाद 5 सप्ताह की की एक कठिन परीक्षा का दौर शुरू होता है जो की इतना काष्टकारी होता है की लोग इसकी तुलना नर्क से भी करते है | इस प्रक्रिया में ट्रेनी को सोने नहीं दिया जाता है ,और उन्हें भूखा भी रखा जाता है और कठिन परिश्रम करवाया जाता है | इस चरण में जो लोग ट्रेनिंग छोड़कर भागते नहीं है उनको बास्तविक ट्रेनिंग के लिए चुना जाता है | 
मार्कोस कमांडो की बास्तविक ट्रेनिंग लगभग 3 साल तक चलती है | इस ट्रेनिंग में इनको जांघो तक कीचड़ में घुस कर 800 मीटर दौड़ लगानी पड़ती है और इस दौरान इनके कन्धों पर 25 किलो का वजन भी रखा जाता है | 
इसके बाद इन जवानो को "होलो " और  "होहो " नाम की ट्रेनिंग को पूरा करना पड़ता है | "हैलो जम्प में जवान को लगभग 11 किमी की उचाई से जमीन पर कूदना होता है जबकि "होहो " जम्प में जवान को 8 किमी की ऊंचाई से कूदना होता है और 8 सेकेंड के अन्दर अपने पेराशूट को भी खोलना होता है | 
मार्कोस प्रशिक्षुओ को पैरा जंपिंग के लिए पैरासूट ट्रेनिंग और गोताखोरी के प्रशिक्षण के लिए कोच्चि में नौसेना के ड्राइविंग स्कुल में ट्रेनिंग दी जाती है | 
मार्कोस कमांडो को हर प्रकार के हथियार और उपकरणों इनमे चाकू और धनुष चलना ,स्नाइपर राइफल्स चलना ,हथगोले चलना और नंगे हाथो से लड़ने में प्रशिक्षित किया जाता है | 
यहाँ पर एक चौकाने वाली बात यह है की इन कमांडो के घरवालों को भी यह पता नहीं होता है की वो कमांडो है | 
इनको अपनी पहचान को छुपाकर रखना होता है | 


मार्कोस कमांडो किस तरह के अभियानों में भाग लेते है :

मार्कोस कमांडो मुख्य तौर से समुंद्र से जुड़े ऑपरेशन करते है लेकिन जरुरत पड़ने पर ये आतंकबाद बिरोधी ऑपरेशन ,एंटी पायरेसी ऑपरेशन समुंद्री डकैती ,समुंद्री घुसपेट को रोकना ,बंधक लोगो का बचाव ,हवाई जहाज अपहरण ,रासायनिक हमलो इत्यादि से निपटने के लिए तैयार किये जाते है | 

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